मिशन: बागवानी में प्रौद्योगिकी आधारित विकास, लक्ष्य: बागवानी में राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान और विकास कार्यक्रम का नियोजन, सहयोग और निगरानी के साथ इस क्षेत्र में ज्ञान रिपोजटिरी की तरह कार्य करना।
बागवानी संभाग का मुख्यालय कृषि अनुसंधान भवन-।।, पूसा कैम्पस, नई दिल्ली में स्थित है। इस संभाग में दो कमोडिटी/सबजेक्ट विशिष्ट तकनीकी विभाग (बागवानी । और ।। के अलावा) और प्रशासन विंग, संस्थान प्रशासन-V विभाग है। उपमहानिदेशक (बागवानी) के नेतृत्व में कार्यरत इस संभाग में दो सहायक महानिदेशक, दो प्रधान वैज्ञानिक और एक उपसचिव (बागवानी) भी शामिल हैं। भा.कृ.अनु.प.(भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) का बागवानी संभाग 10 केन्द्रीय संस्थानों, 6 निदेशालयों, 7 राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्रों, 13 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं और 6 नेटवर्क प्रायोजनाओं/प्रसार कार्यक्रमों के जरिये भारत में बागवानी अनुसंधान पर कार्य कर रहा है।
क्षेत्र
बागवानी (फलों में नट, फल, आलू सहित सब्जियों, कंदीय फसलें, मशरूम, कट फ्लावर समेत शोभाकारी पौधे, मसाले, रोपण फसलें और औषधीय एवम सगंधीय पौधे) का देश के कई राज्यों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है और कृषि जीडीपी में इसका योगदान 30.4 प्रतिशत है। भा.कृ.अनु.प. का बागवानी संभाग इस प्रौद्योगिकी आधारित विकास में प्रमुख भूमिका निभाता है। आनुवंशिक संसाधन बढ़ाना और उनका उपयोग, उत्पादन दक्षता बढ़ाना और उत्पादन हानि को पर्यावरण हितैषी तरीकों से कम करना आदि इस क्षेत्र के अनुसंधान की प्राथमिकता है।
- आनुवंशिक संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन, बढ़ोतरी, जैव संसाधनों का मूल्यांकन और श्रेष्ठ गुणों वाली, उच्च उत्पादक, कीट और रोग सहिष्णु एवं अजैविक दबावों को सहने में सक्षम उन्नत किस्मों का विकास।
- उत्पादकता बढाने हेतु अच्छी किस्मों के लिए सुधरी प्रौद्योगिकियों का विकास जो जैविक और अजैविक दबावों की सहिष्णु होने के साथ ही स्वाद, ताजगी, स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने जैसी बाजार की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
- विभिन्न बागवानी फसलों के लिए स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के विकास द्वारा उत्पादन, गुणवत्ता की विविधता को कम करना, फसल हानि को कम करने के साथ बाजार गुणों में सुधार करना।
- पोषक तत्वों और जल के सही उपयोग की पद्धति विकसित करना और नई नैदानिक तकनीकों की मदद से कीट और रोगों के प्रभाव को कम करना।
- स्थानीय पारिस्थितिकी और उत्पादन पद्धति के बीच संबंध को समझकर जैवविविधता के संरक्षण और संसाधनों के टिकाऊ उपयोग की पद्धतियों का विकास करना।
- ऐसी उत्पादन पद्धति का विकास करना जिसमें कम अपशिष्ट निकले और अपशिष्ट के अधिकतम पुनर्उपयोग को बढ़ावा दे।
- अधिक लाभ के लिए फलों, सब्जियों, फूलों की ताजगी को लम्बे समय तक बनाये रखना, उत्पाद विविधता और मूल्य संवर्धन।
- समुदाय विशेष की आवश्यकता को समझकर संसाधनों के प्रभावी उपयोग और प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए क्षमता निर्माण करना।
उपलब्धियां
भारतीय बागवानी की झलक
- फलों और सब्जियों का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश।
- आम, केला, नारियल, काजू, पपीता, अनार आदि का शीर्ष उत्पादक देश।
- मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश।
- अंगूर, केला, कसावा, मटर, पपीता आदि की उत्पादकता में प्रथम स्थान
- ताजा फलों और सब्जियों के निर्यात में मूल्य के आधार पर 14 प्रतिशत और प्रसंस्करित फलों और सब्जियों में 16.27 प्रतिशत वृद्धि दर।
- बागवानी पर समुचित ध्यान केंद्रित करने से उत्पादन और निर्यात बढ़ा। बागवानी उत्पादों में 7 गुणा वृद्धि से पोषण सुरक्षा और रोजगार अवसरों में वृद्धि हुई।
- कुल 72,974 आनुवंशिक संसाधन जिसमें फलों की 9240, सब्जी और कंदीय फसलों की 25,400, रोपण फसलों और मसालों की 25,800, औषधीय और सगंधीय पौधों की 6,250, सजावटी पौधों की 5300 और मशरूम की 984 प्रविष्टियां शामिल हैं।
- आम, केला, नीबू वर्गीय फलों आदि जैसी कई बागवानी फसलों के उपलब्ध जर्मप्लाज्म का आणविक लक्षण वर्णन किया गया।
- 1,596 उच्च उत्पादक किस्मों और बागवानी फसलों (फल-134, सब्जियां-485, सजावटी पौधे-115, रोपण फसलें और मसाले-467, औषधीय और सगंधीय पौधे-50 और मशरूम-5) के संकर विकसित किये गये। इसके परिणास्वरूप केला, अंगूर, आलू, प्याज, कसावा, इलायची, अदरक, हल्दी आदि बागवानी फसलों के उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
- सेब, आम, अंगूर, केला, संतरा, अमरूद, लीची, पपीता, अनन्नास, चीकू, प्याज, आलू, टमाटर, मटर, फूलगोभी आदि की निर्यात के लिए गुणवत्तापूर्ण किस्मों का विकास किया गया।
- विभिन्न फलों, सब्जियों, औषधीय एवं सगंधीय पौधों में प्रसंस्करण के उद्देश्य और विभिन्न जैविक और अजैविक दबावों की प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया गया।
- जैवप्रौद्योगिकी के प्रयोग से बैंगन और टमाटर की पराजीनी किस्मों का विकास किया गया।
- नीबू वर्गीय फलों, केला, अमरूद, आलू, कसावा और शकरकंद रोगमुक्त, अच्छी गुणता की रोपण सामग्री के उत्पादन के लिए उन्नत तकनीकों का विकास किया गया। विभिन्न फलों, मसालों और वानस्पतिक प्रवर्धित पौधों के लिए सूक्ष्म प्रवर्धन तकनीकों का मानकीकरण किया गया।
- केला, नीबू वर्गीय फलों, अंगूर और काली मिर्च में विषाणु, जीवाणु, कवक और सूत्रकृमि की जांच के लिए सेरोलॉजिकल और पीसीआर आधारित नैदानिक तकनीकें विकसित की गयीं।
- अंगूर में सूखा और लवणता सहिष्णुता के लिए मूलसामग्री (डागरिज और IIOR) की पहचान की गयी। नीबू वर्गीय फलों, सेब, अमरूद और आम की मूलसामग्री की पहचान की गयी।
- स्थान के लम्बवत और आधारवत प्रयोग के लिए, अमरूद में बाग लगाना और केला तथा अनन्नास में सघन रोपण प्रौद्योगिकी का विकास किया गया।
- सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए विभिन्न शीतोष्ण और समशीतोष्ण फलों के लिए छत्रक प्रबंधन पद्धतियों का मानकीकरण किया गया।
- आम, अमरूद, बेर और आंवला के पुराने बागों के जीर्णोद्धार की प्रौद्योगिकी विकसित की गयी।
- कई बागवानी फसलों के लिए सूक्ष्म सिंचाई पद्धति और उर्वरकीकरण प्रौद्योगिकी द्वारा जल और पोषण दक्षता बढ़ायी गयी।
- टिकाऊ लाभ के लिए नारियल, सुपारी, बेर और आंवला के लिए अन्तः सस्यन और बहुस्तरीय फसल प्रणाली का विकास किया गया।
- सफेद मूसली, नीबू घास, पामरोजा, सेना आदि औषधीय पौधों के लिए अच्छी कृषि क्रियाओं का विकास किया गया।
- कट फ्लावर और औषधीय पौधों के उत्पादन में कम समय में ही भारत ने महत्वपूर्ण तरक्की की है।
- पिछले दशक में मशरूम उत्पादन में तेजी आयी है जिससे मशरूम उत्पादक किसानों और उद्यमियों के सामाजिक-आर्थिक स्तर में बेहद सुधार हुआ है। उच्च उत्पादक ऑयस्टर और ब्लू ऑयस्टर मशरूम की प्रजातियों और उत्पादन प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया गया है।
- विभिन्न सब्जियों और सजावटी पौधों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए सुरक्षित उत्पादन का मानकीकरण किया गया है। उच्च उत्पादकता, गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और कम कीमत के कारण यह प्रौद्योगिकी लोकप्रिय हो रही है।
- विषाक्त कीटनाशियों पर निर्भरता कम करने के लिए, इकोफ्रैंडली बायो एजेन्ट जैसे ट्राइकोग्रामा, एनपीवी, पायथियम, पेसिलोमाइसिस आदि का विकास किया गया। मृदाजनित रोगाणु जैसे फ्यूजेरियम, रिजोक्टोरिया, पायथ्यिम, फाइटोफ्थोरा और पादप परजीवी सूत्रों के प्रबंधन के लिए ट्राइकोडर्मा, पी थियोरेसेन्रा, एस्परजीलियस आदि के प्रभावी प्रभेद अलग किये गये।
- फ्रूट हारवेस्टर, ग्रेडिंग और कटिंग मशीन, ड्रायर, आदि विकसित करके फसल हानि को कम करके फल तुडाई और फसल दक्षता बढ़ाने के लिए फार्म मशीनरी का उपयोग किया गया।
- फलों और सब्जियों के फार्म भंडारण के लिए कम लागत के पर्यावरण हितैषी कूल चैम्बर का विकास किया गया है।
- आलू, अंगूर, मसाले में जर्मप्लाज्म संसाधनों, कीटों और रोगों पर डेटाबेस, सूचना और विशेषज्ञ पद्धति का विकास किया गया है।
- नारियल, आम, अमरूद, आंवला, लीची, विभिन्न सब्जियों जैसे आलू, कंदीय फसलें, मशरूम आदि के कई मूल्य वर्धित उत्पाद विकसित किये गये हैं।
- कसावा से अल्कोहल बनाने, कसावा स्टार्च आधारित प्लास्टिक, कसावा आटा और हस्तचलित कसावा चिप्स मशीन का पेटेंट लिया गया है।
- प्रौद्योगिकी के प्रसार के लिए फसल विशिष्ट प्रशिक्षण और प्रदर्शन कार्यक्रम संबंधित संस्थानों/निदेशालयों/राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्रों द्वारा चलाये जा रहे हैं।
भविष्य की रूपरेखा: कृषि में वांछित विकास के लिए बागवानी क्षेत्र को प्रमुख भूमिका निभाने के लिए निम्न अनुसंधान प्राथमिकता के क्षेत्रों पर केंद्रित करना होगा:
- विभिन्न पर्यावरण परिस्थितियों में उगाये जाने वाले फलों और सब्जियों के जीन और एलील आधारित परीक्षण
- पोषण डायनेमिक्स एंड इंटरएक्शन
- जैवऊर्जा और ठोस अपशिष्ट उपयोग
- नारियल, आम, केला और पलवल का जीनोमिक्स
- बागवानी फसलों में उत्पादकता और गुणता सुधार के लिए कीट परागणकर्ता
- अपारम्परिक क्षेत्रों के लिए बागवानी किस्मों का विकास
- फल और सब्जी उत्पादन में एरोपोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स तकनीकों का मानकीकरण
- फलों और सब्जियों में पोषण गुणता का अध्ययन
- बागवानी फसलों में कटाई उपरांत तकनीकी और मूल्य वर्धन
- फलों और सब्जियों के लंबे भंडारण और परिवहन के लिए संशोधित पैकेजिंग
Anil Kumar kirori