किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता। वहीं किसानों को अपना माल बेचने के तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है। मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा। ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य, MSP
फसल पर सही मूल्य ना मिलना– खरीफ फसल 2019-20 के मूल्य निति निर्धारण के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमैन प्रो. विजय पाल शर्मा की अध्यक्षता में सोमवार को जयपुर में दुर्गापुरा स्थित राज्य कृषि प्रबन्ध संस्थान में पश्चिम क्षेत्रीय राज्यों की बैठक हुई। बैठक में राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात व गोआ के कृषि विभाग के अधिकारियों, कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों व किसानों ने मूल्य निति निर्धारण तय करने के लिए मंथन किया गया। सभी राज्यों के अधिकारियों ने अपने-अपने राज्यों के बारे में प्रस्तुतीकरण दिया तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य के सम्बन्ध में अपने-अपने सुझाव दिए।
राजस्थान के अधिकारियों-वैज्ञानिकों ने कहा कि सभी राज्यों में सोयाबीन, कपास एवं मूंगफली जैसी कॉमन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण के लिए खरीफ फसलों की क्रय के लिए प्रक्रियाओं को इस प्रकार से अपनाया जाये ताकि किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य मिल सके। राजस्थान में खरीफ फसलों के न्यूनम समर्थन मूल्य में बढोतरी के साथ-साथ ग्वार, मोठ, लोबिया, अरण्डी एवं मेहन्दी जैसी फसलों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की सूची में सम्मिलित करने का प्रस्ताव दिया। राज्य में बड़े पैमाने पर इन फसलों की खेती की जाती है, जो कि कम वर्षा एवं सूखे की स्थिति में भी अच्छा उत्पादन देती है।
महाराष्ट्र राज्य की प्रक्रिया
बेहतर विभिन्न राज्यों के फसल उत्पादन लागत से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों ने विभिन्न फसलों की उत्पादन लागत निर्धारण की प्रक्रिया के बारे में अवगत कराया। महाराष्ट्र राज्य कृषि उत्पादन मूल्य आयोग के चेयरमैन श्री पासा पटेल ने महाराष्ट्र में फसलों की बुवाई की वास्तविक सूचना एवं गिरदावरी की प्रक्रिया के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि पश्चिम क्षेत्रीय राज्य यदि फसलों के क्षेत्रफल के सही आंकडे़ आंकलन के लिए महाराष्ट्र में अपनाई जा रही प्रक्रिया को लागू करें तो किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाने में सहायक होगा।
किसानों का क्या कहना है
बैठक के दौरान किसानों ने अपनी बात रख बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की प्रक्रिया में कई खामिया है, जिसके कारण किसानों को सही ढंग से इसका फायदा नहीं मिल पाता। किसानों ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मूल्य पर बाजार में किसानों की फसलें बिकती है। खरीद केन्द्रों पर किसानों के सम्पूर्ण उत्पादन का क्रय करने की कोई व्यवस्था नहीं है। गुणवत्ता के मापदण्ड के नाम पर किसानों को अनावश्यक परेशान किया जाता है। समय पर खरीद केन्द्र शुरू नहीं हो पाते तथा आवश्यकतानुसार पर्याप्त खरीद केन्द्र भी नहीं खोले जाते हैं। किसानों को भुगतान हाथों-हाथ नकद की व्यवस्था हो तो ज्यादा बेहतर होगा। कुछ किसानों ने किसानों की श्रेणी के अनुसार उत्पाद विक्रय की सीमा निर्धारण करने का भी सुझाव दिया।
एमएसपी निर्धारण में मांग-आपूर्ति की अहम भूमिका
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमैन श्री शर्मा ने किसानों से आह्वान किया कि किसान संघठित रहेंगे तो उनको अवश्य लाभकारी मूल्य मिलेगा। सरकार की योजनाओं जैसे भण्डारण व्यवस्था एवं प्रंस्करण से जुडकर भी लाभकारी मूल्य ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था इसलिए लाई गई कि किसानों को मजबूरीवश अपनी फसल कम कीमत पर न बेचनी पड़े। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण में मांग और आपूर्ति की स्थिति अहम भूमिका रखती है। जब बम्पर उत्पादन होता है तब फसल की कीमत काफी गिर जाती है।
मोदी सरकार ने 2019 के आम चुनाव से पहले किसानों को बड़ी सौगात दी है। केन्द्र सरकार ने किसानों की फसलों पर लागत मूल्य से 50 फीसदी अधिक न्यूनतम सर्मथन मूल्य (MSP) करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को हुई बैठक में खरीफ फसलों के नए समर्थन मूल्य पर मुहर लगा दी है। केन्द्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष के बजट में किसानों को उनकी फसल की उत्पादन लागत का 50 फीसदी अधिक मूल्य देने की घोषणा की थी।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सरकार के फैसले की घोषणा के बारे में विस्तृत जानकारी दी। सिंह ने कहा कि सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 200 रुपये बढ़ाकर 1,750 रुपये क्विंटल कर दिया गया है. वहीं, ए ग्रेड धान पर 160 रुपये का इजाफा किया गया है।
10 साल बाद इतनी बढ़ी MSP
10 साल बाद खरीफ फसलों के एमएसपी में इतनी बड़ी वृद्धि की गई है. इससे पहले 2008-09 में यूपीए सरकार ने 155 रुपये की वृद्धि की थी. सूत्रों के मुताबिक, 14 खरीफ फसलों में एमएसपी में अधिकतम वृद्धि रागी में हुई है. इसका एमएसपी 1900 रुपये बढ़ाकर 2,897 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है।
मक्के के समर्थन मूल्य को 1425 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1700 रुपये किया गया। मूंग की एमएसपी को 5,575 रुपये से बढ़ाकर 6,975 रुपये प्रति क्विंटल किया गया। उड़द के न्यूनतम समर्थन मूल्य को 5400 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5600 रुपये किया गया. इसी तरह से बाजरा के एमएसपी को 1425 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1950 रुपये किया गया।
कपास (मध्यम रेशा) के लिए किसानों को अभी तक 4,020 रुपये प्रति 100 किलोग्राम मिल रहा था. अब इसे बढ़ाकर 5,150 रुपये किया गया है। लंबे रेशे वाले कपास का मूल्य 4,320 रुपये से बढ़ाकर 5,450 किया गया है।
क्या है MSP?
MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को हम फसलों का सरकारी भाव भी कह सकते हैं। सरकार हर साल फसलों की MSP तय करती है ताकि किसानों की उपज का वाजिब भाव मिल सके. इसके तहत सरकार फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया, नैफेड जैसी सरकारी एजेसिंयों की मदद से किसानों की फसलों को खरीदती है।
कितनी बदलेगी किसानों की सूरत?
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)बढ़ने से क्या वाकई किसानों की हालत बदलेंगे इस बारे में जाने-माने एग्री एक्सपर्ट विजय सरदाना का कहना है कि सरकार पहले तो किसानों की फसलों की खरीद की सही व्यवस्था सुनिश्चित करें। उनका कहना है कि एमएसपी में भारी बढ़ोतरी से घरेलू बाजार और वैश्विक बाजार में कीमतों में काफी विभिन्नता आ जाएगी।
उनका कहना है कि मक्का, सोयाबीन और कपास जैसी फसलें वैश्विक बाजारों में भारत की तुलना में पहले से काफी प्रतिस्पर्धी मूल्य (कम दाम पर) पर बिक रही हैं जबकि एमएसपी बढ़ने से हमारी फसलें के खरीदार मिलने में दिक्कते आएंगी। उनका कहना है कि सरकार भी किसानों से फसल खरीदकर वैश्विक बाजारों में अपनी फसलों की बिक्री करती है।
उन्होंने कहा है कि दो साल पहले सरकार ने दालों की बड़े पैमाने पर खरीद की थी, जोकि आज तक वेयरहाउस में पड़ी हैं। सरकार को खरीदार नहीं मिल रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार को किसानों की फसलों के भंडारण (वेयरहाउस) की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि किसानों की फसल खराब न हो।
राजस्थान के हाजिर बाजारों पर गहरी नजर रखने वाले पुखराज चोपड़ा का कहना है कि सरकार के इस कदम से किसानों को बहुत ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है। उन्होंने कहा कि फिलहाल चने का एमएसपी 4,400 रुपये प्रति क्विवंटल है। लेकिन अब भी कई मंडियों में इसके भाव काफी नीचे चल रहे हैं और किसान बेचने को मजबूर हैं।
वहीं इस बारे में एग्री कमोडिटी एनॉलिस्ट एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट अनुज गुप्ता का कहना है कि सरकार ने जिन फसलों का एमएसपी ज्यादा बढ़ाया है उन फसलों की पैदावार बढ़ने के आसार हैं, क्योंकि किसान ज्यादा मुनाफे के चक्कर में वही फसलें बोएंगे. ऐसे में फसलो चक्र गड़बड़ा सकता है। सरकार की घोषणा के बाद एग्री कमोडिटी एक्सचेंजों पर इन कमोडिटीज की कीमतों में बहुत ज्यादा हलचल देखने को नहीं मिली है।
खजाने पर 33,500 करोड़ का बोझ
इस वृद्धि से सरकार के खजाने पर 33,500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. बढ़े हुए एमएसपी का मूल्य जीडीपी के 0.2 फीसदी है। अतिरिक्त खर्च में धान की हिस्सेदारी 12,300 करोड़ रुपये है।
आजाद भारत में सर्वाधिक वृद्धि: राजनाथ
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आजाद भारत के इतिहास में न्यूनतम समर्थन मूल्य में इतनी बड़ी वृद्धि की गई. उन्होंने कहा, ‘किसान देश का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है, लेकिन उन्हें कभी भी अपने उत्पाद की सही कीमत नहीं मिल पाती है। किसानों में हताशा और निराशा थी इसे प्रधानमंत्री ने समझा।’ उन्होंने कहा कि वह भी किसान परिवार से हैं और यह कभी कल्पना नहीं की थी कोई सरकार ऐसा कदम उठाएगी।
ये है खरीफ की फसलों की नई एमएसपी
फसल का नाम | नई MSP | पुरानी MSP | कितनी वृद्धि |
धान | 1,550 | 1,750 | 200 |
कपास | 4,020 | 5,150 | 1,130 |
तूअर | 5,450 | 5,675 | 225 |
मूंग | 5,575 | 6,975 | 1,400 |
उड़द | 5,400 | 5,600 | 200 |
सोयाबीन | 3,050 | 3,399 | 349 |
बाजरा | 1425 | 1950 | 525 |
नोट- भाव (रुपए/क्विंटल) में हैं।
भूमि पर अधिकार (भूमि विवाद): देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है। असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं। जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं। ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं।
भारतीय किसानों की समस्याएं : खाद्य और कृषि संगठन द्वारा 1970 से 2001 तक भारत की कृषि वृद्धि के 2003 के विश्लेषण ने भारतीय कृषि में प्रणालीगत समस्याओं की पहचान की। खाद्य स्टेपल के लिए, छह-वर्षीय खंडों 1970-76, 1976–82, 1982-88, 1988-1994, 1994-2000 के दौरान उत्पादन में वार्षिक वृद्धि दर क्रमशः 2.5, 2.5, 3.0, 2.6, और 1.8 % प्रति वर्ष पाई गई। कुल कृषि उत्पादन के सूचकांक के लिए अनुरूप विश्लेषण एक समान पैटर्न दिखाता है, जिसमें 1994-2000 की विकास दर केवल 1.5% प्रति वर्ष प्राप्त होती है।