भूमि पर अधिकार (भूमि विवाद): देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है। असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं। जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं। ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं।
सरकार निजी ज़मीनों का अधिग्रहण, सार्वजनिक उद्देश्य से अथवा कम्पनीयों के लिए, भूमि के मालिक को भूमि छिन जाने के कारण अथवा उससे प्राप्त राजस्व की हानि की क्षतिपूर्ति हेतु पर्याप्त मुआवजा देकर, कर सकती है। सरकार द्वारा भूमि के अधिग्रहण से सम्बन्ध प्राथमिक विधान 1894 ई. का भूमि- अधिग्रहण अधिनियम है।
भूमि अधिग्रहण कानून की विस्तृत जनकारी
1. प्राथमिक अधिसूचना
सरकार को भूमि अथवा अन्य परिसंपत्ति के अधिग्रहण की अपनी मंशा को जाहिर करने हेतु सबसे पहले एक अधिसूचना निम्नलिखित में जारी करना चाहिए:
- सरकारी गजट।
- स्थानीय समाचार पत्रों, जिनमें से एक क्षेत्रीय भाषा का होना चाहिए।
- उस इलाके के उपयुक्त स्थलों पर जन सूचना प्रदर्शित करनी चाहिए जहां भूमि स्थित हैं।
इन प्रकाशनों में से सबसे बाद वाली की तिथि अधिसूचना की तिथि मानी जाएगी। अधिसूचना की तिथि को भूमि अथवा अन्य परिसंपत्ति के बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजा दिया जाएगा।
2. आपत्तियों की जांच
अधिसूचना प्रकाशित होने के 30 दिनों के अंदर भूमि अथवा परिसंपत्ति में रुचि रखने वाले व्यक्ति अपनी अपत्तियों को कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत करें।
यदि अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य हेतु नहीं किया गया है, आवश्यकता से अधिक भूमि अधिग्रहित की जा रही है, भूमि पर कोई ऐतिहासिक स्मारक, जनहित का स्थल अथवा धार्मिक भवन, मकबरा या कब्रगाह इत्यादि होने के विषयों में आपत्ति की जा सकती हैं।
इस चरण में, किसी वैकल्पिक भूमि जिसे अधिग्रहित की जा रही भूमि के बदले लिया जा सकता है, के बारे में कलेक्टर को सलाह दी जा सकती है। यदि कलेक्टर इन सलाहों पर कोई ध्यान नहीं देते तो उच्च न्यायालय में इस बात की सूचना विवेकानुसार दी जा सकती है।
- कलेक्टर को अधिग्रहण के खिलाफ आपत्ति दर्ज करने वालों की बातों की मौखिक सुनवाई करनी होगी।
- यद्यपि, अत्यंत आवश्यक होने पर आपत्तियों पर सुनवाई की प्रक्रिया टाली जा सकती है।
3. वांछित अधिग्रहण की घोषणा
सरकार को पुन: एक बार अधिग्रहण की पुष्टि करते हुए एक अधिघोषणा निम्नलिखित प्रपत्रों/रूपों में अवश्य करनी चाहिए:
- सरकारी गजट।
- स्थानीय समाचार पत्रों, जिनमें से एक क्षेत्रीय भाषा का होना चाहिए।
- भूमि के स्थित होने की जगह पर सूचना के रूप में।
प्राथमिक सूचना की तिथि के 1 वर्ष के अंदर ही यह घोषणा होनी चाहिए। इसमें अधिग्रहित हो रही भूमि के अवस्थित होने की जगह तथा अधिग्रहण के सार्वजनिक उद्देश्य की बिल्कुल सही सूचना होनी चाहिए।
4. संबद्ध व्यक्तियों की सूचना
- अधिग्रहित होने वाली भूमि पर या उसके पास कलेक्टर द्वारा सार्वजनिक सूचना का अवश्य प्रकाशन होना चाहिए।
- भूमि पर अधिकार रखने वाले व्यक्ति को तथा इससे संबद्ध व्यक्तियों को उसके द्वारा इस आशय की सूचना अवश्य भिजवानी चाहिए कि नोटिस में उल्लेखित तिथि को मुआवजे के दावे तथा भूमि की माप से संबंधित आपत्तियां उसके समक्ष दर्ज की जाएंगी।
- नोटिस की तिथि के बाद 15 दिनों की अवधि इन दावों के लिए दी जानी चाहिए।
5. कलेक्टर के अधिनिर्णय
अधिग्रहण की जा रही भूमि के क्षेत्रफल और संबद्ध पक्षों को, दावों की जांच के बाद मिलने वाले मुआवजे के बारे में कलेक्टर द्वारा अधिनिर्णय दिया जाता है। वांछित अधिग्रहण की घोषणा के प्रकाशन की तिथि के 2 वर्ष के भीतर अधिनिर्णय दिया जाना चाहिए।
मुआवजे के अंतर्गत भूमि का बाजार मूल्य, उस बाजार मूल्य पर 12% वार्षिक की व्याज राशि तथा दिए गए बाजार मूल्य के 30% के बराबर एक सांत्यना-उपहार (अनिवार्य अधिग्रहण के एवज में मिलने वाली सांत्वना राशि) राशि शामिल होंगे।
भूमि विवाद समाधान की प्रक्रिया
Que: 1. किस धारा के अंगर्तग शिकायत दर्ज करें ?
- धारा 4: प्राथमिक अधिसूचना
- धारा 6: वांछित अधिग्रहण घोषणा
- धारा 11: कलेक्टर की जाँच तथा उसका अधिनिर्णय
- धारा 18: मामले को अदालत में प्रेषण
- धारा 28 ए: मुआवजे का पुनर्निर्धारण
Que: 2. शिकायत किससे करें/कहाँ करें?
यदि कलेक्टर के फैसले से संबद्ध पक्ष संतुष्ट नहीं होते तो वे कलेक्टर से मामले को जिला अदालत में प्रेषित करने हेतु अनुरोध कर सकते हैं।
Que: 3. मामला दर्ज कैसे करें?
मामले के प्रेषण हेतु अनुरोध प्राप्त होने पर कलेक्टर को मामला जिला अदालत में प्रेषित कर देना होगा।
प्रेषण हेतु कोई अदालत शुल्क की आवश्यकता नहीं होती।
- अदालत मुआवजे की रकम बढाने अथवा अधिग्रहण की जाने वाली भूमि की माप से संबंधित कलेक्टर के अधिनिर्णय को बदलने अथवा मुआवजे के आवंटन हेतु अधिनिर्णय देगी।
- यद्यपि, इसके द्वारा मुआवजे की रकम को घटाया नहीं जा सकता।
Que: 4. इसके बाद क्या होता है ?
यदि अदालत ने उच्चतर मुआवजे का आदेश दिया है तो संबद्ध पक्ष कलेक्टर के पास मुआवजे के पुननिर्धारण हेतु आवेदन कर सकते हैं।
जिला अदालत के फैसले के 90 दिनों के अंदर, उसके खिलाफ, उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध पुनः, इस निर्णय के 60 दिनों के अंदर सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
वैकल्पिक निदान
इस अधिनियम के तहत किसी वैकल्पिक निदान की व्यवस्था नहीं है।