भंडारण के आभाव में सालाना अरबों की फसले, फल और सब्जियों का नुकसान: भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है। ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं। भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं।
भारत व अफ्रीका यह मानते हैं कि अफ्रीका में सामाजिक आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मानव संसाधन विकास महत्वपूर्ण है। अफ्रीकी देशों में खेती प्रमुख व्यवसाय है। फिर भी, पर्याप्त भंडारण सुविधा के अभाव में खेत तथा उद्यानिकी फसलों का बहुत नुकसान होता है। देश में हर साल कटाई के बाद 2 लाख करोड़ रुपए की फलों और सब्जियों का नुकसान होता है। एक अध्ययन में कहा गया है कि भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव में देश में अरबों रुपए के फल व सब्जियां हर साल बर्बाद हो जाती हैं।
उद्योग मंडल एसोचैम के एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में सालाना 2 लाख करोड़ रुपए की फल व सब्जियों की बर्बादी होती है। इसकी मुख्य वजह खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की कमी, आधुनिक भंडारण सुविधाओं का अभाव तथा इस मुद्दे से निपटने के प्रति संवेदनहीन रवैया है।
भारत में बागवानी क्षेत्र-राज्य स्तर का अनुभव शीर्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में उत्पादित 22 प्रतिशत फल व सब्जियां थोक मंडियों में पहुंच पाती हैं। रा’यों की बात की जाए, तो कटाई के बाद सबसे ‘यादा नुकसान पश्चिम बंगाल में 13,657 करोड़ रुपए का होता है। गुजरात में सालाना नुकसान 11,400 करोड़ रुपए, बिहार में 10,700 करोड़ रुपए और उत्तर प्रदेश में 10,300 करोड़ रुपए का सालाना नुकसान होता है।
अध्ययन में कहा गया है कि इस तरह की बर्बादी को रोकने थोक बाजारों के साथ स्थानीय तथा क्षेत्रीय बाजारों में शीत भंडारण सुविधाओं का विकास जरूरी है। हालांकि, अध्ययन में कहा गया है कि 2021 तक देश में फलों और सब्जियों का उत्पादन बढ़कर 37.7 करोड़ टन पर पहुंच जाएगा, जो फिलहाल 22.7 करोड़ टन है।
ये बातें क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ. गिरधर जे ज्ञानी ने सोमवार को वैशाली स्थित महागुन मॉल में खाद्य सुरक्षा को लेकर हुए भारत-अफ्रीका फोरम सम्मेलन में कहीं। उन्होंने कहा, अफ्रीका में खाद्य प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव के अलावा, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रशिक्षित मानव शक्ति की भी कमी है। इससे खाद्यान्न, फसल व वनस्पति को नुकसान पहुंचता है।
ये बातें अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने स्वीकार की है। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न के उत्पादन में हमें कई प्रकार की बातों पर ध्यान रखना पड़ता है। उत्पादन के समय फसल को कीटों से बचाने के लिए सही मात्रा में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव, फसल की सिंचाई के समय उचित तापमान का होना, रासायनिक खादों के इस्तेमाल से बचना, शुष्क मौसम में फसलों को नुकसान से बचाना समेत अनेक सावधानियां बरती जाती हैं।
काउंसिल की सलाहकार प्रवीण गंगा हर ने कहा कि खाद्य सुरक्षा में गुणवत्ता एक तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसका देश के नागरिकों के स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। खाद्य सुरक्षा पर विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, फूड प्रोसेसिंग उद्योग, टेस्टिंग और प्रमाणीकरण आदि क्षेत्रों में हमें खाद्य सुरक्षा के लिए एक व्यवस्थित ढांचे की आवश्यकता है।
फूड काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित हुआ यह सम्मेलन 15 दिन तक चलेगा। इस दौरान विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किए जाएंगे। सम्मेलन में अफ्रीकी देश सूडान, यूगांडा, तंजानिया, मौजांबिक, मेडागास्कर व केन्या समेत अन्य देशों के करीब 25 डेलीगेट शामिल हुए। सम्मेलन में नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फार सर्टिफिकेशन बॉडीज के सीईओ बी वेकटरमण, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के उप सचिव, सुनी अरोड़ा, सागर दत्ता आदि उपस्थित थे।
खाद्य भंडारण
फसल कटने के तुरन्त बाद यह आवश्यक होता है कि अन्न को कुछ सप्ताह या कुछ माह के लिये सुरक्षित रखा जाय। इसे ही खाद्य भण्डारण कहते हैं। भंडारण प्रभाग केन्द्रीय खाद्य स्टॉक के लिए पर्याप्त भण्डारण क्षमता को सुनिश्चित करने से संबंधित नीतिगत पहलुओं की निगरानी करता है। यह अपने नियंत्रणाधीन सार्वजनिक क्षेत्र के दो केन्द्रीय उद्यमों (सीपीएसई) नामत: केन्द्रीय भंडारण निगम और सीआरडब्ल्यूसी के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कृषीय और अधिसूचित वस्तुओं के लिए संभारतंत्र सहायता उपलब्ध कराने का भी प्रयास करता है। यह एक विनियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए) के लिए प्रशासनिक प्रभाग भी है।
खाद्य प्रसंस्करण
खाद्य प्रसंस्करण घर या खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में मानव या पशुओं के उपभोग के लिए कच्चे संघटकों को खाद्य पदार्थ में बदलने या खाद्य पदार्थों को अन्य रूपों में बदलने के लिए प्रयुक्त विधियों और तकनीकों का सेट है। आम तौर पर खाद्य प्रसंस्करण में साफ़ फसल या कसाई द्वारा काटे गए पशु उत्पादों को लिया जाता है और इनका उपयोग आकर्षक, विपणन योग्य और अक्सर दीर्घ शेल्फ़-जीवन वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जाता है। पशु चारे के उत्पादन के लिए भी इसी तरह की प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
खाद्य प्रसंस्करण के चरम उदाहरणों में शामिल हैं शून्य गुरुत्वाकर्षण के तहत खपत के लिए घातक फुगु मछली का बढ़िया व्यंजन या आकाशीय आहार तैयार करना।
खाद्य सुरक्षा
खाद्य सुरक्षा (food security) से तात्पर्य खाद्य पदार्थों की सुनिश्चित आपूर्ति एवं एवं जनसामान्य के लिये भोज्य पदार्थों की उपलब्धता से है। पूरे इतिहास में खाद्य सुरक्षा सदा से एक चिन्ता का विषय रहा है। सन १९७४ में विश्व खाद्य सम्मेलन में ‘खाद्य सुरक्षा’ की परिभाषा दी गयी जिसमें खाद्य आपूर्ति पर बल दिया गया।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
भारतीय संसद द्वारा पारित होने के उपरांत सरकार द्वारा 10 सितम्बर, 2013 को इसे अधिसूचित कर दिया गया। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उद्देश्य लोगों को सस्ती दर पर पर्याप्त मात्रा में उत्तम खाद्यान्न उपलब्ध कराना है ताकि उन्हें खाद्य एवं पोषण सुरक्षा मिले और वे सम्मान के साथ जीवन जी सकें। 20 अगस्त 2013 को हरियाणा,उत्तराखंड, दिल्ली मे इस अधिनियम का कार्यान्वयन प्रारंभ हो चुका था तथा इस अधिनियम के अंतर्गत राज्यों को खाद्यान्न का आवंटन भी प्रारंभ हो चुका था।
मुख्य तथ्य
इस कानून के तहत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत तक तथा शहरी क्षेत्रों की 50 प्रतिशत तक की आबादी को रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इस प्रकार देश की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या को इसका लाभ मिलने का अनुमान है।
- पात्र परिवारों को प्रतिमाह पांच कि. ग्रा. चावल, गेहूं व मोटा अनाज क्रमशः 3, 2 व 1 रुपये प्रति कि. ग्रा. की रियायती दर पर मिल सकेगा।
- अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) में शामिल परिवारों को प्रति परिवार 35 कि. ग्रा. अनाज का मिलना पूर्ववत जारी रहेगा।
- इसके लागू होने के 365 दिन के अवधि के लिए, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएम) के अंतर्गत सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न प्राप्त करने हेतु, पात्र परिवारों का चयन किया जाएगा।
- गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान तथा प्रसव के छ: माह के उपरांत भोजन के अलावा कम से कम 6000 रुपये का मातृत्व लाभ भी मिलेगा।
- 14 वर्ष तक की आयु के बच्चे पौष्टिक आहार अथवा निर्धारित पौष्टिक मानदण्डानुसार घर राशन ले जा सकें।
- खाद्यान्न अथवा भोजन की आपूर्ति न हो पाने की स्थिति में, लाभार्थी को खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जाएगा।
- इस अधिनियम के जिला एवं राज्यस्तर पर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी प्रावधान है।
- पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक प्रावधान किए गए हैं।
केन्द्रीय भंडारण निगम (CWC)
इस विभाग के तहत 02.03.1957 को स्थापित केन्द्रीय भंडारण निगम,एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम, कृषि उपकरणों तथा उत्पाद तथा अन्य अधिसूचित वस्तुओं के लिए वैज्ञानिक भंडारण सुविधाएं मुहैया कराता है। केन्द्रीय भंडारण निगम एक आईएसओ 9001:2000, आईएसओ 14000:2004 और ओएचएसएएस 18001:2007 अनुसूची ‘क’ एक मिनी रत्न, श्रेणी-I संगठन है।
31.10.2017 की स्थिति के अनुसार केन्द्रीय भंडारण निगम 52 सीमा शुल्क बोंडेड भण्डारगारों, 31 कन्टेनर फ्रेंट स्टेशनों / अन्तर्देशी निकासी डिपुओं, 3 एयर कार्गो काम्प्लैक्सों (एसीसी) (5961 मीट्रिक टन) और 3 तापमान नियंत्रित भण्डारगारों (0.02 लाख मीट्रिक टन) जो निर्यात / आयात व्यापार के लिए सेवाएं उपलब्ध कराते हैं सहित 99.06 लाख मीट्रिक टन की कुल परिचालित भण्डारण क्षमता के साथ 433 भांड़ागारों को संचालित कर रहा है।
वित्तीय निष्पादन (करोड़ रु मे)
वर्ष | कुल बिक्री | खर्च | टैक्स के पूर्व लाभ | टैक्स के बाद लाभ | लाभांश | |
---|---|---|---|---|---|---|
दर | राशि(लाख रु मे) | – | – | – | – | |
2011-12 | 1218.65 | 1059.53 | 159.12 | 100.46 | 40% | 2718.96 |
2012-13 | 1406.70 | 1197.47 | 209.23 | 139.55 | 41% | 2786.93 |
2013-14 | 1528.19 | 1271.72 | 256.47 | 161.05 | 48% | 3262.75 |
2014-15 | 1561.83 | 1301.77 | 260.06 | 182.12 | 54% | 3670.70 |
2015-16 | 1639.93 | 1356.37 | 283.56 | 197.82 | 88% | 5981.80 |
2016-17 | 1606.29 | 1346.70 | 260.58 | 231.22 | 142% | 9652.00 |
2017-18 (31.10.2017 तक) (अनंतिम) | 887.53 | 814.55 | 72.98 | 54.75 | – | – |
राज्य भण्डारण निगम (SWC)
केन्द्रीय भंडारण निगम के 19 सहयोगी राज्य भंडारण निगम हैं। 31.10.2017 की स्थिति के अनुसार केन्द्रीय भंडारण निगम का कुल निवेश, जो राज्य भंडारण निगमों की ईक्विटी पूंजी में 50 प्रतिशत का हिस्सेदार है, 61.79 करोड़ रूपये था। 01.10.2017 की स्थिति के अनुसार राज्य भंडारण निगम कुल 273.41 लाख मीट्रिक टन की कुल क्षमता के साथ 1787 भांड़ागारों को संचालित कर रहे थे।
सेन्ट्रल रेलसाइड वेयरहाउसिंग कारर्पोरेशन (CRWC)
केन्द्रीय भंडारण निगम ने रेल साइडों पर भाण्डागार कॉम्प्लैक्सों (आरडब्ल्यूसी) को विकसित करने और विस्तार करने हेतु 100 प्रतिशत स्वामित्व के साथ एक सहायक कम्पनी नामत: सेन्ट्रल रेलसाइड वेयरहाउसिंग कारर्पोरेशन लि. (सीआरडब्ल्यूसी) स्थापित की है।
यह सहायक कम्पनी 10.07.2007 को निगमित की गई थी और कारोबार शुरू करने के लिए प्रमाणपत्र 24.07.2007 को प्राप्त किया गया था।
सीआरडब्ल्यूसी 15.11.2017 की स्थिति के अनुसार 3,32,099 मीट्रिक टन की कुल भण्डारण क्षमता के साथ 19 रेल साइड भाण्डागार काम्प्लैक्सों का संचालन कर रहा था।
भाण्डागार विकास एवं विनियामक प्राधिकरण (WDRA)
भाण्डागारण विकास एवं विनियामक प्राधिकरण, भाण्डागारण (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2007 के तहत 26.10.2010 को गठित किया गया है।
इसका मुख्य कार्य देश में परक्राम्य भाण्डागार रसीद प्रणाली को कार्यान्वित करना,प्रत्यायन एजेसिंयों को पंजीकृत करना, पर्याप्त सुविधाओं और रक्षापायों वाले भाण्डागारों जो डब्ल्यूडीआरए द्वारा यथा विहित वित्तीय,प्रबन्धकीय तथा मानदण्डों को पूरा करते हैं, का पंजीकरण करना है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी को बढ़ाने तथा कारगर सप्लाई चेन को बढ़ावा देने के लिए जर्माकर्ताओं और बैंकों के न्यासीय विश्वास में सुधार किया जा सके।
भाण्डागार विकास और विनियामक प्राधिकरण ने एक परिवर्तन योजना आरंभ की है जिसमें इसके मुख्य कार्यकलापों के लिए डिजिटल प्रणालियों को समाविष्ट करने की परिकल्पना की गई है।